अपने चहरे को आईना बना, बदन को गुलाब,
अपने गरुर को हवा में उड़ा, अपनी आरजू को बना ख्वाब।।
तेरी हर बात की तालीम हो, हर लफ्ज़ में हो मिठास,
तू नहीं तो दुनिया कुछ भी नहीं, तू है तो दुनिया खास।।
तेरे आने पर ख़ुदा सजदा करें, तेरे जाने पर हिज्र की हो रात।
तेरी खामोशी एक मसला बन जाए, तू हंस दे तो बहारों की हो सोगात।।
तू ख्याल नहीं एक ख्वाब बन, तू दिन नहीं तू रात बना।
तू हवा नहीं एक तूफ़ान बन, तू प्यास नहीं रेगिस्तान बन।।
तू धुआं नहीं तू आग बन, तू राख नहीं शमशान बन।
तू रहीम नहीं रहमान बन,तू जात नहीं इंसान बन।।
तू एक कौम नहीं संसार बना, तू मुल्क नहीं एक परिवार बना।तू रंजीश नहीं महरम बना, आसमां को नहीं धरती को स्वर्ग बना।
तू मन्दिर नहीं, मस्जिद बना, उसमें अली नहीं तू राम बैठा।
तू काशी नहीं मक्के को जा,वहां क़ुरान नहीं तू गीता पढ़ा।
आशीष रसीला
Wah….last line is very thoughtful…. Waqt ka takaza bhi yahi hai
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Thanks you 🙏
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बहुत अच्छा ✍️
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Letest
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वाह क्या अंदाज है
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