शाख से टूट एक पत्ता मुसाफिर बन गया,
जहां भी हवा ले चले उसका मुक्कदर बन गया।
सफर में टूट कर वो मिट्टी में मिल गया,
ना जाने कितने फूलों को वो आबाद कर गया।।
***आशीष रसीला***

शाख से टूट एक पत्ता मुसाफिर बन गया,
जहां भी हवा ले चले उसका मुक्कदर बन गया।
सफर में टूट कर वो मिट्टी में मिल गया,
ना जाने कितने फूलों को वो आबाद कर गया।।
***आशीष रसीला***
This is beautiful….amazing dear…carry on honey…
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