मेरी कुछ अधूरी खाईशों को मेरे दिल से ले जा कर कहीं दूर रख दो।
तुम इस मरहम के साथ मेरे प्याले में थोड़ा ज़हर भी रख दो।
आज उसकी बाहों से लिपटकर मुझे सो जाना है,
तुम मेरे आखिरी महबूब का नाम मौत रख दो।
***आशीष रसीला***
तुम पूछते हो कि हम क्या लिखते हैं ,हम खुदा को जमीं पर ला कर उसके गुनाहों की दास्तान लिखते हैं | पंख टूट कर गिर जाने वाले परिंदे के अरमान लिखते हैं || ये आंधियां अपनी औकात मे रहें इसलिए हम तूफान लिखते हैं|| अब इससे ज्यादा और क्या कहूँ मेरे हुज़ूर हम अपने दुश्मन को ही अपनी जान लिखते है||
मेरी कुछ अधूरी खाईशों को मेरे दिल से ले जा कर कहीं दूर रख दो।
तुम इस मरहम के साथ मेरे प्याले में थोड़ा ज़हर भी रख दो।
आज उसकी बाहों से लिपटकर मुझे सो जाना है,
तुम मेरे आखिरी महबूब का नाम मौत रख दो।
***आशीष रसीला***
KYA BAAT BHAI
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Superb.
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Bahut bahut shukriya ji
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Wah
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Thank you
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