मेरी आंखें जल रही हैं, मेरी पलकों पर अपने लब रख दो,
इन उजालों से दुनिया कल देखूंगा, अभी ले जा इन्हें सूरज के सामने रख दो।
ये शहर नया है, ये घर नया है, ये लिबास भी नए लाए हो,
यूं करो ,इस पुराने जिस्म को घर के किसी कोने में रख दो।
घरों में आग लग जाती है, घर के चिरागों से ही,
यूं करो कि मेरा एक कमरा, इस घर से बाहर कर दो।
शाम हो चली है और वो आने वाली है,
मेरी कुर्सी, मेरा चश्मा घर की बालकनी में रख दो ।।
***आशीष रसीला***
