वो हवा सी बहती है , मैं चिराग़ सा जलता हूं,
वो सुबह सी खिलती है , मैं शाम सा ढलता हूं।
वो चांद की सहेली है , मैं जुगनू सा फिरता हूं ,
वो बारिश की बूंदों सी , मैं रेत सा उड़ता हूं ।
वो एक पहेली उलझी सी , मैं उसमें उलझा रहता हूं ,
वो परियों की सरजमीं से, मैं बाशिंदा जमीं का लगता हूं।
वो वक़्त सी चलती है , मैं एक लम्हा सा ठहरता हूं,
वो ख़्वाब में मिलती है , मैं हक़ीक़त में रहता हूं ।
वो किताब है ग़ज़लों की , मैं आख़िरी हर्फ पर लिखा हूं ,
वो अप्सराओं की कहानी है, मैं वो कहानी लिखता हूं।।
***आशीष रसीला***

बहुत खूबसूरती से आपने शब्दों को पिरोया है…उम्दा लेखन..✌️😊
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Thank you so much ji
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👌👌
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Shukriya 🙏
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उम्दा ,❤️❤️
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Thanks ji 🙏
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Kya baat
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Shukriya 🙏
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Thank you ji
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बहुत सुंदर रचना
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Thank you ji
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बेहद खूबसूरत लिखा है आपने
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Thanks you 🙏
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Wowww
Heart touching lines 💗
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Thank you ☺️
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