ये समंदर भी ना जाने कितनी नदियां खा गया,
आज परिंदो की पंचायत है, पेड़ फल खा गया।
हर अजीब बात पर ताज़्जुब नहीं किया करते ,
वो चोरों को सजा देगा जो चोरी का माल खा गया ।
सब कारवां यहां – वहां भटकते हैं ,
एक मुसाफ़िर मंजिलों का रास्ता खा गया ।
जब सोया तो आसमान में चांद – तारे सलामत थे,
जागे तो सूरज चांद- तारों की रोशनी खा गया ।
एक इल्ज़ाम मुझ पर ज़िदंगी ने लगाया है ,
मैं कुछ करता नहीं हूं यूं ही आधी उम्र खा गया ।।
***आशीष रसीला***
