मैं मर गया तो शायद इन किताबों में मिलूं ,
एक नज़्म बनकर शायद तेरे होठों पर खिलूँ ।
मुझे ढूंढने से बेहतर तुम मुझे महसूस करना,
शायद हवा की खुशबू में सिमटा हुआ मिलूं।
तुम मेरी लिखी हुई किताबों को गौर से पढ़ना ,
मुमकिन है मैं मेरी तहरीर में सलकता हुआ मिलूं।
तुम मेरे लगाए हुए पेड़ों के पास कुछ देर बैठना,
शायद सर्दी में ठिठुरता,गर्मी में तप्ता हुआ मिलूं।
हो सके तो मेरी बातें,मेरे लतीफे हमेशा याद रखना,
किसी दिन तेरे रोते चेहरे पर मैं हंसी बन कर खिलूँ ।।
आशीष रसीला

Waah sir
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