कुदरत के लहजे में कुछ उबाल आया है,
बहुत दिनों बाद हवा में उझाल आया है ।
हवा पहाड़ से कुछ कंकर गिरा कर बोली ,
जरा ध्यान से मेरी हथेली पर बाल आया है।
इन्तहा हो गई ऐ-खुदा तुझको आना चाहिए ,
तेरे चाहने वालों की ज़िंदगी पर सवाल आया है।
मेरी दोनों चप्पल अमरूद के पेड़ पर लटकी हैं,
पहली बार पेड़ पर चढ़ने का ख्याल आया है।
काले बादल भी आए मगर बारिश नहीं हुई,
हवा छोटा झोंका बादलों को खंगाल आया है।
मेरे गांव की लड़कियां सज सवर कर बैठी हैं,
मुमकिन है शहर से कोई जमाल आया है।
वो मुझे तबाह करने की ताक में बैठा है,
ये इश्क एक अजीब सा भ्रम पाल आया है ।
मुझे एक लम्हा गुजरने पर नींद नहीं आती,
लोग खुश होते हैं की नया साल आया है ।।
आशीष रसीला
