पैसा है तो चाहे भगवान खरीद ले

पैसा वो है जो किसी औकात खरीद ले,
पैसे वो है जो लोगों के दिन रात खरीद ले ।

ये दुनियां बिकने को बाजार मैं बैठी है,
अपनी जरूरत के हिसाब से यार खरीद ले।

आज होती हैं शादियां पैसों के शानो पर ,
पैसा है तो चाहे हमसफर हजार खरीद ले।

शर्म के बाजार में लोग खुदकी कीमत लगाते हैं,
सही दाम लगाए तो लोगों के जमीर खरीद ले।

जिस आसमान में तुम उड़ान ना भर सको,
पैसा है तो अपना नया आसमान खरीद ले।

कोई  फर्क नहीं पड़ता  की तू क्या था ,
पैसा है तो अपनी नई पहचान खरीद ले ।

मरते हैं भूख से लोग इन मंदिरों के बाहर,
पैसा है तो चाहे अपना भगवान खरीद ले ।

इस दुनियां में हर एक चीज की कीमत है,
मुंह मांगे दाम पर यहां  इंसान खरीद ले।

माना सबकुछ बिकता है इस दुनिया में, मगर
कोई ऐसी दौलत नहीं जो मां का प्यार खरीद ले।।

आशीष रसीला

गैरों की सलाह नहीं मागतें

अपनों के मसलों पर गैरों की सलाह नहीं मांगते,
ज़िंदगी जीने के लिए किसी की राय नहीं मांगते।

जो तेरा अपना है वो तेरे हर हाल में तेरे साथ होगा,
छोड़ जाने वालों के लिए कभी फ़रियाद नहीं मांगते।

इस दुनियां को अच्छा कहना या बुरा बहुत मुश्किल है,
हजारों चीटियां रोंथ कर लोग माफी तक नहीं मांगते ।

यूं तो ज़मीं पर बैठा हर इंसान अपनी खरियत मांगता है ।
मिलता सिर्फ उनको है जो कभी खुद के लिए नहीं मांगते।।

***आशीष रसीला***

वो जरूर आएगी

मुझे ढूंढने की कोशिश में वो जरूर आएगी,
आंखें मलती हुई खाली हाथ लौट जाएगी।

मेरे कमरे में बस भिखरी हुई किताबें होंगी,
वो हमेशा की तरह उन्हें सजाकर लौट जाएगी।

मुमकिन है कुछ आदतें मेरी अब भी जिंदा हो,
किताबों की धूल उसके बदन से लिपट जाएगी।

तुम हमेशा की तरह इस बार नाराज मत होना।
ये मेरी पुरानी आदत है आसानी से नहीं जाएगी।।

आशीष रसीला

Ashish Rasila

कौन कहता है

कौन कमबख्त कहता है बदल जाने को,
मैं नही कहता इश्क में हद से गुजर जाने को।
ये जरूरी तो नहीं की तेरी मुहब्बत मुक्कमल हो,
दुनियां में और भी चीजें है कुछ कर गुजर जाने को।।

आशीष रसीला

Ashish Rasila

जिस्म दिखाना बाकी था

यूं तो बेताब हर कोई था उसे अपना बनाने को,
मगर तैयार कोई नहीं था हद से गुजर जाने को।

हमने उसे खुदा मान कर  बुतों सा पूजा ,
एक मनचला ले गया उसे जन्नत दिखाने को।

अब तलक उस आशिक ने चेहरा देखा था,
जिस्म दिखाना बाकी था अभी हवस मिटाने को।

छोड़ो यार अब इसके बाद मुहब्बत नहीं करेंगे ,
दुनिया में और भी गम हैं दिल से लगाने को ।

अब मेरे हुजरे मैं बस एक ही दिया बाकी था ,
अभी मेरे शहर के सारे खुदा बाकी थे मनाने को।

लोग खुदको तो हमेशा ही अच्छा कहते हैं ,
बस वो बुरा कहते हैं तो ग़म-ख़्वार जमाने को।।

आशीष रसीला

Ashish Rasila

किताबों में मिलूं

मैं मर गया तो शायद इन किताबों में मिलूं ,
एक नज़्म बनकर शायद तेरे होठों पर खिलूँ ।

मुझे ढूंढने से बेहतर तुम मुझे महसूस करना,
शायद हवा की खुशबू में सिमटा हुआ मिलूं।

तुम मेरी लिखी हुई किताबों को गौर से पढ़ना ,
मुमकिन है मैं मेरी तहरीर में सलकता हुआ मिलूं।

तुम मेरे लगाए हुए पेड़ों के पास कुछ देर बैठना,
शायद सर्दी में ठिठुरता,गर्मी में  तप्ता हुआ मिलूं।

हो सके तो मेरी बातें,मेरे लतीफे हमेशा याद रखना,
किसी दिन तेरे रोते चेहरे पर मैं हंसी बन कर खिलूँ ।।

आशीष रसीला

Ashish Rasila

काग़ज़ पर चांद उतारा है

पहली बार काग़ज़ को आईने सा निहारा है,
तेरी तस्वीर को नज़्म बना काग़ज़ पर उतारा है ।
चमक उठेगा काग़ज़ का नसीब यकीन मानो ,
कागज़ के पन्ने पर हमने आज चांद उतारा है । ।

आशीष रसीला

मैं इतना बुरा भी नहीं

मैं इतना बुरा भी नहीं जितना तुम लोगों को बताती हो,
तुम इतनी अच्छी भी नहीं जितना तुम बन कर दिखाती हो।
खैर छोड़ो, मैं यहां तुम्हारे ऐबों को गिनवाने नहीं आया,
बस कहना चाहता हूं, की तुम मुझे याद बहुत आती हो।।

आशीष रसीला

Ashish Rasila

पसीने की खुशबू

मेरी माँ को पिता के पसीने की खुशबू अच्छी लगती है,
गांव में बच्चों को दादा-दादी की कहानी अच्छी लगती है।

शहर की चौड़ी सड़कों पर लोग रोंध दिए जाते है,
मुझे मेरे गाँव की छोटी कच्ची सड़कें अच्छी लगती है।

मेरे गांव के पागल लोग पिपल की पूजा करते हैं ,
हमें ऐसे अंधविश्वास की समझदारी अच्छी लगती है।

शहर के फुटपातों पर गरीब लोगों का बेसरा है ।
मुझे गाँव में कुछ गज जमीं की जमीदारी अच्छी लगती है।

आपको आपका मोटर कार मुबारक हो साहिब ,
हमको तो बैलगाड़ी की सवारी अच्छी लगती है।

जिस पढ़ाई से गांव में शहर की नीव रख दी जाए ,
ऐसी पढ़ाई से अनपढ़ रहने को बीमारी अच्छी लगती है।।

आशीष रसीला