Category: Shayari
वीर सावरकर जयंती

कौन कहता है
कौन कमबख्त कहता है बदल जाने को,
मैं नही कहता इश्क में हद से गुजर जाने को।
ये जरूरी तो नहीं की तेरी मुहब्बत मुक्कमल हो,
दुनियां में और भी चीजें है कुछ कर गुजर जाने को।।
आशीष रसीला

काग़ज़ पर चांद उतारा है
पहली बार काग़ज़ को आईने सा निहारा है,
तेरी तस्वीर को नज़्म बना काग़ज़ पर उतारा है ।
चमक उठेगा काग़ज़ का नसीब यकीन मानो ,
कागज़ के पन्ने पर हमने आज चांद उतारा है । ।
आशीष रसीला
मैं इतना बुरा भी नहीं
मैं इतना बुरा भी नहीं जितना तुम लोगों को बताती हो,
तुम इतनी अच्छी भी नहीं जितना तुम बन कर दिखाती हो।
खैर छोड़ो, मैं यहां तुम्हारे ऐबों को गिनवाने नहीं आया,
बस कहना चाहता हूं, की तुम मुझे याद बहुत आती हो।।
आशीष रसीला

कोई देखता ना हो
आईना देखो जब तुम्हें कोई देखता ना हो
खुद से बातें करो मगर कोई देखता ना हो….
खुलकर हंसो अपने दुश्मनों के सामने
खुलकर रो दो जब दुश्मन देखता ना हो….
गुनाह करो गुनाह करने में कोई बुराई नहीं
जरूरी है गुनाह करते वक्त खुदा देखता ना हो…
बात एक तरफा प्यार की है तो बस इतना कहूंगा
उसे चुपके से देखो जब वो तुम्हे देखता ना हो….
वो दिल में रह सकतें हैं बस शर्त इतनी
जाना तब होगा जब दिल देखता ना हो….
तुम खुद को जानना चाहते हो तो मेरा मशवरा है
खुद को गौर से महसूस करो जब कोई देखता ना हो….
***आशीष रसीला***

अब रो चुके बहुत
अब रो चुके बहुत, अब तो हंसना चाहिए ,
जो हुआ सो हुआ, अब आगे बढ़ना चाहिए ।
जब आयेगी मौत, तब देखा जाएगा ,
अभी ज़िन्दगी को ज़िन्दगी की तरह जीना चाहिए ।
एक पहाड़ से टकराकर हवा जख्मी हुई,
अब तूफ़ानों को भी अपना हुनर आजमाना चाहिए।
ये आसमां में चांद रोज निकलता है ,
ज़मीं पर भी एक चांद निकलना चाहिए।
सूरज तपता रहता है मेरे सर पर,
इन अंधेरों का भी कोई चिराग़ जलना चाहिए।
बहुत हूंआ इंतजार अब ज़ान निकलने को है,
अब खुदा को मुझ से आकर मिलना चाहिए ।।
***आशीष रसीला***