तुम पूछते हो कि हम क्या लिखते हैं ,हम खुदा को जमीं पर ला कर उसके गुनाहों की दास्तान लिखते हैं | पंख टूट कर गिर जाने वाले परिंदे के अरमान लिखते हैं || ये आंधियां अपनी औकात मे रहें इसलिए हम तूफान लिखते हैं|| अब इससे ज्यादा और क्या कहूँ मेरे हुज़ूर हम अपने दुश्मन को ही अपनी जान लिखते है||
जो कभी हमें अच्छा कहते थे , वो अब हमें बुरा कहने लगें हैं, जो हमें समझा करते थे, वो अब हमें से जानने लगें हैं । मुझे जिनके इंसान होने पर भी ताज्जुब हुआ करता था, अजीब बात है वे लोग अब खुद को खुदा कहने लगें हैं ।।
ऐ - खुदा माना के दुनिया में हर चीज नहीं मिलती, मगर हर चीज को तो मांगा भी नही हमने । तेरी इतनी बड़ी दुनिया में सिर्फ एक शख्स की चाहत, उसी को छोड़ कर क्यूं सब कुछ दिया तुमने ? ***आशीष रसीला***