Poetry on life

ज़िन्दगी तक मत किया कर

ऐ जिन्दगी इतना तंग मत किया कर ,
तेरी सासों पर हुक़ूमत आज भी हमारी चलती है ||

जिदंगी तेरे बारे में सोच कर तरस अता है

ज़िन्दगी तेरे बारे में सोच कर मुझे तरस आता है ,
तेरी मंजिलों का रास्ता सिर्फ मौत तक जाता है ।

वक्त की जुंबिश में हम दोनों हैं मुसाफ़िर ,
यहां सिर्फ लम्हा लिखने पर ही लम्हा बित जाता है ।

तू मेरा ख़्वाब है , तू अपनी मंज़िल से पहले मुझे जीने दे ,
मौत के आने पर जिदंगी का हर ख़्वाब टूट जाता है ।

उम्र – ऐ – दराज़ जहान्नुम में गुजर जाएगी ,
तुम हमसफ़र बनों तो , हर रास्ता जन्नत को जाता है ।

ऐ – जिंदगी , मुझे तुमसे कोई शिकवा नहीं है, लेकिन  ,
तू खुश रहा कर, खुश रहने में तेरा क्या जाता है ?

***आशीष रसीला***

वजह ढूंढ लो

गम के समंदर में एक  बूंद खुशी की ढूंढ़ लो,
जिदंगी अच्छी लगेगी, अगर जीने की वजह ढूंढ लो।

दस्तूर – ए – दुनियां बहुत हंसेगी तेरे बुरे हालों पर,
तुम अभी से बुरे हालों में, मुस्कुराने की वजह ढूंढ लो।

अंधेरा छोड़ो, तेरा साया भी कल तुझे रह – रह कर  डरायेगा,
तुम अपनी आंखें बंद करो, अंधेरे में रोशनी ढूंढ़ लो।

राज क्या है  समंदर का, तुम खुद ही जान जाओगे,
अगर डुबकी लगा कर  गहराई में कुछ मोती ढूंढ लो ।

दुनियां घूम लो, मगर कोई बेहतर शख्स ना मिलेगा,
उसे ढूंढ सकते हो  तो अपने अंदर ढूंढ लो ।।

***आशीष रसीला***

ज़िन्दगी खुशकिस्मत

ज़िन्दगी खुशकिस्मत है मगर फिर भी उदास है,
कल से तूने आईना नहीं देखा, कुछ तो बात है ।
वक्त की जुंबिश में तू रुक सा गया है क्यूं?
ये कैसी रात है, सूरज भी निकला है चांद भी साथ है।।

***आशीष रसीला***

मौत

मेरी कुछ अधूरी खाईशों को मेरे दिल से ले जा कर कहीं दूर रख दो।
तुम इस मरहम के साथ मेरे प्याले में थोड़ा ज़हर भी रख दो।
आज उसकी बाहों से लिपटकर मुझे सो जाना है,
तुम मेरे आखिरी महबूब का नाम मौत रख दो।

***आशीष रसीला***

नामुमकिन

एक ज़िन्दगी में खुद को समझ पाना नामुमकिन है,
जब खुद में उलझे रहते हो, किसी ओर को समझ पाना नामुमकिन है।

ये दौलत, ये शोहरत तुम जिदंगी भर कमा सकते हो,
मगर कुछ भी साथ ले जाना तो नामुमकिन है ।

तुम खरीदों तो शायद पूरा शहर खरीद लो,
मगर ज़िन्दगी खरीद पाना नामुमकिन है।

हजारों शिकायतें रहती है हमको दूसरों से,
मगर खुद को सही कहना भी नामुमकिन है।

***आशीष रसीला***

दिल सब ने

दिल सब ने किसी ना किसी का दुखाया हैं, इंसान कोई फरिश्ता नहीं,
धोखा हम सब ने वफ़ा में खाया हैं, यूं कोई जिंदगी ख़त्म करता नहीं।
अजीब हैं, वे लोग जिनको सच्ची मुहब्बत नहीं दिखती,
प्यार माँ सा, दोस्त पिता से बेहतर दुनिया में कोई होता नहीं।।
**आशीष रसीला**

ज़िन्दगी में दौड़ लगी है

ज़िन्दगी की सच्चाई
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दुनियां में दौड़ लगी है, मगर जाना कहां है?
किसी को  पता नहीं,
एक उम्र बीती है दौलत कमाने में, मगर खर्च करने बैठे हैं,
तो आज उम्र नहीं।
घर बनाने के लिए बेघर रहा ज़िन्दगी भर, जब आज घर मिला ,
तो परिवार नहीं।
उम्र के दरिचे से आख़िर सांस लेते हुए सोचता हूं, कि  जिदंगी  जिया भी हूं ?
सच कहूं तो मालूम नहीं।।
***आशीष रसीला***


मैं बन्द आंखो का

मैं बन्द आंखो का एक बुझा उजाला बन गया हूं,
मैं मौत के मीठे जहर का एक प्याला बन गया हूं।
अय ख़ुदा मुझे मेरी मंजिल का पता  बता दे तू ?
मैं आज तूफान से हवा का झूठा हवाला बन गया हूं।।

***आशीष रसीला**

ख़ुद पर सवाल

कभी खुद के होने पर भी सवाल किया करो,
उन सवालों के जवाब खुद ही दिया करो।

तुझे मालूम नहीं तेरे अंदर भी एक इंसान रहता है ?
वक्त निकाल कर उससे गुफ्तगु किया करो।

तुम खास हो या आम क्या फ़र्क पड़ता है ?
ज़िन्दगी को  अपने असुलों से जिया करो।
***आशीष रसीला***

मेरी ज़िन्दगी

मेरी ज़िंदगी उदासी की खास रिश्तेदार लगती है,
मैं अपनी खुशियों को याद करता हूं तो वो रोने लगती है।।

ज़िन्दगी जी चुके है

अर्ज़ किया है,
ज़िन्दगी जी चुके है बहुत, अब  मरने की तैयारी है,
अब डर किस बात का, मौत का फतवा जारी है।
ज़िन्दगी तूने मुझे ज़ख़्म दिए है बहुत,
तू सम्भल, अब तेरी बारी है।।
***आशीष रसीला***

जिन्दगी मुझसे जीने

जिन्दगी मुझसे जीने का हिसाब मांगने लगी,
मौत मुझसे मेरे गुनाहों का जवाब मांगने लगी।
मैंने अपनी किस्मत का लिखा पढ़ दिया,
के सच्चाई मुझसे माफी की फरियाद मांगने लगी।।
***आशीष रसीला***

सबसे महंगा सौदा

जिदंगी का सबसे महंगा सौदा हमने किया,
सारी खुशियां दाव लगाकर इश्क कर लिया।

कुछ खास खरीदते है

उम्र भर की कमाई से आज कुछ खास खरीदते है,
तुम सही दाम लगाओ तो हम अपना ख्वाब खरीदते है।

उम्र बीती है समझदारी के ढोंग में,
हम अपनी सारी दौलत के बदले कुछ खिलोने खरीदते है।

कुछ बचा नहीं है तो हम  ताउम्र को दाव पर लगाते है,
इसके बदले हम तुमसे बचपन के चंद लम्हे खरीदते है।।
***आशीष रसीला***

एय मौत

एय मौत मेरा वादा है तुझे से मिलने मैैं जरूर आऊंगा,
मगर इससे पहले तू ये  बता जिंदगी कहां रहती है ?


सच्चाई

अगर मौत इलाज है जिंदगी का, तो फिर जीना क्या है?
तकदीर खुदा ने लिखी है, तो फिर मेरा गुनाह क्या है?
ज़िन्दगी भर कमाया है मैंने, मगर साथ ले जाना क्या है?
मेरे अपने ही मुझे छोड़ आयेंगे एक दिन,तो फिर सोचना क्या है?
*****आशीष रसीला*****

जिदंगी मरने से पहले

जिन्दगी मरने से पहले मुझे उलाहना देने आई ,
की मैं मरने वाली हूँ तुमने ये बात मुझे पहले क्यूँ नही बताई||

जिंदगी जब मौत का पता

जिन्दगी जब मौत का पता पूछने आई मुझ से ,
मैंने रो कर पूछा ऐसी क्या खता हो गई मुझ से ||