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माँ ( Happy mother’s day)
सब किरदारों से हटकर है माँ
कुछ-कुछ नानी जैसी है माँ
ना कोई फरिश्ता ना कोई खुदा
मुझको माँ जैसी दिखती है माँ
कभी गुस्से में तपती दोपहर जैसी
कभी बरगद की ठंडी छाँव है माँ
छोटी-छोटी नोक्छोक में उलझी
बातों की काफी सुलझी है माँ
कभी शहद सी मीठी लोरी गाए
कभी नीम के पत्तों की औषधि है माँ
माँ चूल्हा-चौका चिमटा-फुकनी
बाजरे की रोटी सरसों का साग है माँ
बंधी होती है माँ के पल्लू से चाबी
घर की पहली लक्ष्मी है माँ
यूं तो वो अक्सर मुस्कुराती रहती है
अब्बा से लड़कर बहुत रोती है माँ
कभी यहां से वहां, वहां से यहां
चिंता में सोती कच्ची नींद है माँ
इस दुनिया में चाहे कितने भी खुदा हो
इस दुनिया का इकलौता वजूद है माँ
हर गली हर गांव हर शहर में है माँ
हर लड़की का पहला अहसास है माँ…
***Ashish Rasila***

कोई देखता ना हो
आईना देखो जब तुम्हें कोई देखता ना हो
खुद से बातें करो मगर कोई देखता ना हो….
खुलकर हंसो अपने दुश्मनों के सामने
खुलकर रो दो जब दुश्मन देखता ना हो….
गुनाह करो गुनाह करने में कोई बुराई नहीं
जरूरी है गुनाह करते वक्त खुदा देखता ना हो…
बात एक तरफा प्यार की है तो बस इतना कहूंगा
उसे चुपके से देखो जब वो तुम्हे देखता ना हो….
वो दिल में रह सकतें हैं बस शर्त इतनी
जाना तब होगा जब दिल देखता ना हो….
तुम खुद को जानना चाहते हो तो मेरा मशवरा है
खुद को गौर से महसूस करो जब कोई देखता ना हो….
***आशीष रसीला***

सब कुछ आपका है
आसमान का सपना देखने वालों ,
इस जमीं का ज़िम्मा आपका है ।
बुझाकर दिया, अंधेरा देखा,
अब रोशनी का जिम्मा, आपका है ।
दर्द पर लतीफे पढ़ने वालों ,
अगला पन्ना, आपका है।
बारिश के तूफान में ओले पड़े,
खेत खलिहान, किसान का है ।
बची धान सरकारें खाएं,
सड़क पर किसान, आपका है ।
शहर की आग के पीछे तेज हवा,
अब अगला गांव, आपका है।
मैं बिखरा, तो वो टूटा ,
आगे उनसे रिश्ता, आपका है ।
पेड़ कटा, हवा जहरली हुई,
ये कुदरत का तोहफा, आपका है
कुछ चले गए, कुछ जाने वाले हैं,
अब सिर्फ इतंजार, आपका है ।।
*** आशीष रसीला***

मेरा मक़सद नहीं
खुद को किसी से बेहतर कहना मेरा मक़सद नहीं,
किसी का दिल दुखा कर खुश रहना मेरा मक़सद नहीं।
मैं जो भी था, मैं जो भी हूं , मैं जो भी होने वाला हूं ,
अपने हालों पर किसी को मुजरिम बनाना मेरा मक़सद नहीं।
मुझ से अनजाने में किसी का दिल भी टूट सकता है ,
मगर मैं पलट कर माफ़ी ना मांगू, मेरा मक़सद नहीं ।
कुछ टूटे हैं मुझ से रिश्ते, कुछ लोगों ने मुझ से तोड़े हैं,
मगर रिश्तों के टूटने से मैं ख़ुद टूट जाऊं, मेरा मक़सद नहीं ।
मैं किसी के ऐब गिनाता फिरूं ये मेरी ज़हनियत नहीं है ,
अपने दुश्मन को भी बुरा कहना, मेरा मक़सद नहीं ।
झुक जाए सर मेरे एहतराम में, ऐसी शोहरत का मोहताज नही,
किसी का सर झुका कर उसे गले लगाना, मेरा मक़सद नहीं।
किसी के सपनों पर मैं अपने सपनों की नीव नही रख सकता,
किसी को हरा कर जितने की मुराद रखना, मेरा मक़सद नहीं।
ये दुनियां एक दुनियां है मेरी दुनियां तो कहीं और है ,
ख्वाबों की दुनियां में हकीकत को भूल जाना, मेरा मक़सद नहीं।
मेरा गलत होना या सही होना तुम्हारे नजरिए से है,
किसी के कहने पर मैं बदल जाऊं, मेरा मक़सद नहीं ।
खुदा है तो खुदा होगा, मुझे उसके होने पर ऐतराज नहीं,
खुदा के नाम पर मैं मिट जाऊं ऐसा सोचना, मेरा मक़सद नहीं ।
मुनासिफ है की कल बुलंदियों का मैं आसमान चुमूं ,
मगर मैं अपनी ओकाद भूल जाऊं, मेरा मक़सद नहीं ।
इस दुनियां में रहने वाले हम सभी किरायेदार हैं ,
मैं जैसे आया था, वैसे ही लौट जाऊं, मेरा मक़सद नहीं ।
मैंने बहुत सोच समझ कर ये अपनी बातें रखी हैं ,
लोग अपने दिल पर ना लगा बैठें, मेरा मक़सद नहीं ।।
***आशीष रसीला***

कुछ लोग हमें जानने लगें हैं …!
जो कभी हमें अच्छा कहते थे
जो कभी हमें अच्छा कहते थे , वो अब हमें बुरा कहने लगें हैं,
जो हमें समझा करते थे, वो अब हमें से जानने लगें हैं ।
मुझे जिनके इंसान होने पर भी ताज्जुब हुआ करता था,
अजीब बात है वे लोग अब खुद को खुदा कहने लगें हैं ।।
***आशीष रसीला***
वो कहती है, मैं कहता हूं
सूरज को बुझा देता है
हर शाम कोई सूरज को बुझा देता है,
इन जुगनुओं में कोई आग लगा देता है ।
मैं कुछ दिनों से उस शख़्स कि तलाश में हूं,
जो हर शाम आसमान को काली चादर ओढ़ा देता है ।
ये बादल काली घटाओं सा जब छा जाए ,
तो आसमान की छत में टपका लगा देता है ।
तारीकीयां उजालों से नहीं उलझ सकती ,
एक चिराग़ अंधेरों को ओकात में ला देता है ।।
***आशीष रसीला***

अब रो चुके बहुत
अब रो चुके बहुत, अब तो हंसना चाहिए ,
जो हुआ सो हुआ, अब आगे बढ़ना चाहिए ।
जब आयेगी मौत, तब देखा जाएगा ,
अभी ज़िन्दगी को ज़िन्दगी की तरह जीना चाहिए ।
एक पहाड़ से टकराकर हवा जख्मी हुई,
अब तूफ़ानों को भी अपना हुनर आजमाना चाहिए।
ये आसमां में चांद रोज निकलता है ,
ज़मीं पर भी एक चांद निकलना चाहिए।
सूरज तपता रहता है मेरे सर पर,
इन अंधेरों का भी कोई चिराग़ जलना चाहिए।
बहुत हूंआ इंतजार अब ज़ान निकलने को है,
अब खुदा को मुझ से आकर मिलना चाहिए ।।
***आशीष रसीला***