ग़ज़ल

कौन कहता है

कौन कहता है कि तलवारें सिर्फ जंग मैं चलती है,
मैंने उसकी ख़ामोशी को भी सर कलम करते देखा है|
कौन कहता है कि चाँद बहुत खुबसूरत है
मैंने चाँद को भी उसकी एक अदा के आगे झुकते देखा है|
कौन कहता है कि वक्त कभी रुकता नही,
मैंने उसकी मुस्कुराहट पर वक्त को भी ठहरते देखा है|
कौन कहता है कि हवांए सिर्फ आंधियां लाती है ,
मैंने हवाओ को भी उसके बाल सवारते देखा है|
कौन कहता है कि खुद कुछ भी कर सकता है,
मैंने खुदा को भी उसकी एक झलक के लिए तरसते देखा है|
कौन कहता है कि सूरज सा तेज किसी में भी नही,
मैंने ओरेगी सा तेज उसके चहरे पैर देखा है|
कौन कहता है कि फुल ही सिर्फ खुशबु देते है,
मैंने फूलों को भी उसकी खुशबु से महकते देखा है|
कौन कहता है कि परिंदे इंसानों की भाषा नही समझते ,
मैंने तितलियों को उससे बात करते देखा है |
कौन कहता है कि तीर सिर्फ कमान से चलते है,
मैंने खुद के दिल को उसकी आंखों के तीरों से घायल होते देखा है|
कौन कहता है कि जंग सिर्फ वतन के लिए ही लड़ी जाती है,
मैंने उसको पाने की चाहत में खुद को कफन उठाते देखा है|
कौन कहता है कि वक्त किसी का इंतजार नहीं करता,
मैंने खुद के वक्त को ही उसकी तक में बैठे देखा है|
कौन कहता है कि अपने ही वफादार होते है,
मैंने अपने दिल को ही उसके घर से निकलते देखा है|
कौन कहता है कि सिर्फ कांटे ही जख्म देते है,
मैंने खुद को फूलों से घाव खाते देखा है |
कौन कहता है कि इश्क में इंसान टूट जाता है,
मैंने मांझी को प्यार में पहाड़ चीरते देखा है |
कौन कहता है कि आशीष कभी डरता नही ,
मैंने आशीष को भी उसके डर से कांपते देखा है ||

जन्नत कब लगती है

कोई मुझ से पूछेगा ना की जिंदगी जन्नत सी कब लगती है |
माफ़ी चाहूँगा मगर मैं तुम्हारा जिक्र करूंगा||
मैं कहूँगा की जब वो होले से अपने गुलाब से हाथों को मेरे चहरे पर रखती है,
जब हम दोनों के सिने लगने से दोनों मैं एक ही साँस धडकती है,
जब वो मेरे बालों को हाथों से सहला कर सो गया क्या पूछने लगती है,
जब उसके प्यार की बुँदे मेरे गर्मी मै तडपते बदन पर ठन्डे पानी की तरह पडती है,
जब उसकी खामोशी भी मुझे मधुर आवाज मैं गया हुआ एक संगीत सा लगती है,
जब उसकी आंखे मेरे आंख भर के देखने से शर्माने लगती है,
जब उसकी खुशबु मेरे बदन को महकाने लगती है,
जब उसकी बातें मूझे बिना किसी वजह के अकेले में हंसाने लगती है,
जब उसके सामने मेरी सारी बुराइयाँ शर्माने लगती है,
जब उसकी मुस्कुराहट से जिंदगी मुस्कुराने लगती है,
कसम खुदा की जिंदगी मुझे तब जन्नत सी लगती है||

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मैं कहता हूँ

वो कहती है कि मैं रूठी तो आप हमको मना नहीं पायंगे ,
मैं कहता हूँ कि तुम रूठी तो हम दुनिया से रूठ जायेंगे |
वो कहती है कि मैं गई तो आपको हमारी याद कभी नही आयेगी ,
मैं कहता हूँ कि अगर जिक्र ना होगा आपका हमारी बातों में तो ये जिंदगी हमको रास ना आएगी
वो कहती हूँ कि एक दिन आप हमें भूल जायेंगे ,
मैं कहता हूँ कि भला मैं अपनी साँसों को कैसे भुलायेंगे |
वो कहती है कि मैं रोई तो आप हमारे आसूं पोंछ ना पाएंगे ,
मैं कहता हूँ कि रहूँगा तुम्हारे साथ तो आंसू भी हम से इजाजत लेने आएंगे|
वो कहती है कि हम आपको कभी मिल ना पाएंगे ,
मैं कहता हूँ कि तुम घबराओ मत हम तुम्हे हर रोज सपनों में मिलने आएंगे |
वो कहती है कि आप एक दिन हम से बहुत दूर चले जायेंगे ,
मैं कहता हूँ कि जब बंद करोगी ऑंखें तो हम आपको अपने अंदर ही नजर आएंगे |
वो पूछती है कि क्या आप हमारा जिन्दगी भर साथ निभाएंगे ,
मैं कहता हूँ कि इससे ज्यादा क्या होगा जब हम आपके साथ ही जनाजे में जायेंगे |
वो पूछती है कि हमारे सपने बहुत बड़े है क्या आप उनको ताबीर कर पाएंगे ,
मैं कहता हूँ कि आप बस हुक्म कीजिये हम आपके लिए चाँद तारे भी तोड़ लायेंगे |
वो कहती है कि आपको एक दिन कोई और पसंद आ जाएगी ,
मैं कहता हूँ कि अफ़सोस मेरी ये आँखे उस दिन आपको आखिरी बार देख पाएंगी |
वो कहती है कि आप ढूंढो हमसे अच्छी और मिल जाएगी ,
मैं कहता हूँ कि होगी लाखों अच्छी मगर मुझे आप से अच्छी कभी मिल ना पायेगी |
वो पूछती है कि क्या आप हमें हमारी खुशी के लिए छोड़ चलें जायेंगे ,
मैं कहता हूँ कि हाँ मगर उस दिन के बाद हम जीना भूल जायेंगे |
वो पूछती है कि क्या आप हमारी ख़ुशी के लिए हमारी मौत पर भी मुस्कुराएंगे ,
मैं कहता हूँ कि हाँ हम आपके साथ ही मुस्कुराते हुए जायेंगे |
वो पूछती है कि आप हमारे लिए कब तक लिखते जाओगे ,
मैं कहता हूँ कि जब तक चलेगी आसीष की सांसे तब तक हर साँस के साथ हम आप का हिसाब इस कलम से लिखते जायेंगे ||

मुहब्बत

मुहब्बत करनी है तो उसकी रूह से कर ,
ताकि जब तुम छुओ उसे तो इश्क पाक हो जाये |
मुहब्बत करनी है तो उसके सपनो से कर ,
ताकि जब तुम मिलो उसे तो सपने ताबीर बन जाये |
मुहब्बत करनी है तो उसकी खुशियों से कर ,
ताकि जब वो सोचे तेरे बारे तो उसके गम भी शर्मा जाए|
मुहब्बत करनी है तो उसकी हंसी से कर ,
ताकि जब तुम देखो उसकी ओर तो सारी कायनात उसको हंसाने में लग जाए |
मुहब्बत करनी है तो उसकी मुस्कुराहट से कर ,
ताकि जब तुम देखो उसकी ओर तो वक्त भी थम सा जाए |
मुहब्बत करनी है तो उसकी सांसों से कर ,
ताकि जब तुम पकड़ो उसका हाथ तो मौत भी उसे छू ना पाए |
मुहब्बत करनी है तो उसके साये से कर ,
ताकि जब वो पूछे तेरे बारे तो उसकी परछाई में उसे तेरा वजूद नजर आये |
मुहब्बत करनी है तो उसके चहरे की चमक से कर ,
ताकि जब वो सुने तेरे बारे तो उसके चहरे पर तेरे नाम का नूर आ जाए |
मुहब्बत करनी है तो उसकी गजाल सी आँखों से कर ,
ताकि जब वो बंद करे आंखे तो बंद आँखों में भी तेरा चेहरा नजर आये|
मुहब्बत करनी है तो उसके लिए अपनी मुहब्बत से कर ,
ताकि जब वो देखे तेरी मुहब्बत तो मुहब्बत करना सिख जाए |
और अगर फिर भी ना माने तो आसीष मुहब्बत कर अपने आप से,
ताकि जब देखे तुझे ये दुनिया तो जीना सिख जाए ||

क्यूँ

एय मेरे खुदा आखिर मुझे हुआ क्या है ,
दिल तो है भरा सा मगर दिखता खाली सा क्यूँ है ?
लगा रोज जमती है महफिल हमारे दिल में ,
मगर आज जब हम बैठे है तो ये महखाना खाली सा क्यूँ है ?
कभी ख़ुशी झलकती थी इन आँखों में ,
आज इन आँखों में दर्द का समन्दर सा क्यूँ है?
दिल तो है ये मेरा अपना ही ,
मगर आज लगता ये पराया सा क्यूँ है ?
गम भी इजाजत मांगता था हमारी जिंदगी में आने की ,
आज मेरा पलभर मुस्कुराना भी लगता चंद लम्हों का महमान सा क्यूँ है?
वैसे तो रोज मिलता था मैं उनसे ,
पर आज मिलता हूँ तो लगता बहाना सा क्यूँ है ?
कभी ढलता था सूरज तो चाँद पर नूर आता था,
आज ये सूरज ही दीखता मुझे पिघलता सा क्यूँ है ?
ये हवाएं भी मुझ से बातें किया करती थी ,
आज इन हवाओ में भी इतना सन्नटा सा क्यूँ है ?
ढोंग लगती थी खुदा की बंदगी भी मुझे ,
आज एक शक्श में ही दीखता खुदा सा क्यूँ है ?
आजकल हर रात पूछती मुझे से एक सवाल सा क्यूँ है ?
दिन में उसको देखना ही लगता हर सवाल का जवाब सा क्यूँ है ?
कभी लिखता था आसीष तो अह्भाव होता था शायरियों में ,
आज उसकी कलम से टपकता लहू सा क्यूँ है ??

उसे कह दो

उसे जरूरत नही है यूँ कीमती लिबास पहनने की ,
उसके बदन की तराश ही कयामत लाने का हुनर रखती है |
उसे जरूरत नही है यूँ चहरे पर चन्दन का लेप लगाने की ,
उसकी खूबसूरती तो चाँद को भी खलती है |
उसको जरूरत नही है यूँ कीमती इत्र लगाने की,
उसके बदन की खुशबु तो मुर्दों मई भी जान फुकती है |
उसे जरूरत नही है बालों को बांध कर रखने की ,
उसके बालों से तो तितलियाँ भी खेलती है
उसे जरूरत नही है यूँ खामोश रहने की ,
उसकी आवाज से तो कोयल भी जलती है |
उसे जरूरत नही है यूँ उदास रहने की ,
उसकी मुस्कुराहट तो हवाओ के रुख बदलती है |
उसको जरूरत नही है यूँ नजरें झुका कर चलने की ,
उसकी नजरे तो हम जैसों के लिए महखाने का काम करती है |
उसे जरूरत नही है अपना ठोड़ी का तिल छुपाने की ,
चाँद की खूबसूरती भी उसके दाग के बिना अधूरी सी लगती है|
उसे जरूरत नही है यूँ धुप से बच निकलने की ,
सूरज में भी तुमको छूने की कभी कभी आह सी पलती है |
उसे जरूरत नही है बारिश से बच निकलने की ,
ये बारिश की बुँदे भी उसे मिलने के लिए ही बरसती है |
उसे जरूरत नही है यूँ मिटटी से बच निकलने की ,
वो मिटटी भी उसे छू कर सोना बनने की कोसिस करती है |
उसे कह दो
उसे जरूरत नही है यूँ आसीष से नफरत करने की ,
उसी के कारण ही तो उसकी शायरियों में एक अलग ही बात झलकती है |एक अरसे बादएक अरसे बाद खुद को खुद के बारे में बताया है।
मुददतों बाद मैंने खुद को खुद से मिलवाया है।।
डर है कि मैं खुद से ये पूछ ना बैठूं, की क्या करता हूँ?
वो मुझको मालूम है कि वो भी मेरी तरह हालातों का सताया है।।
एक अरसे बाद खुद को खुद के बारे में बताया है।
मुददतों बाद मैंने खुद को खुद से मिलवाया है।।मैं अपाहिज था अक्ल से वरना आदमी समझ ही जाता है।
जो वक्त एक बार चला गया तो फिर कभी लौट कर नहीं आता है।।
मैं आदमी जात का हूँ जिसको सिर्फ दौड़ना होता है।
वक्त के साथ अपने कदमों को जोड़ना होता है।
तुमको तो मालूम है की मैंने कितना वक्त सिर्फ सोचने में गवाया है।
एक अरसे बाद खुद को खुद के बारे में बताया है।
मुददतों बाद मैंने खुद को खुद से मिलवाया है।।हाल अब ऐसा है कि खुद को खुद पर तरस आता है।
पिछली बार खुल कर कब हंसा था, ये सोच कर ही रोना आता है।।
बाप सच में अमीर था जिसने बच्चपन को जन्नत कर दिया,
वरना मेरी औकाद में तो एक वक्त का खाना मुश्किल आता है।।
मैंने खुद पर खुदकी ज़िन्दगी ना जीने का आरोप लगाया है,
मैंने खुद को खुद से मुजरिम कहकर रूबरू करवाया है।
मेरे हालात को मैंने खुद ही ऐसा बनाया है।
मेरी हर हार मैं मैंने मेरी हार को जीतवाया है।।
एक अरसे बाद खुद को खुद के बारे में बताया है।
मुददतों बाद मैंने खुद को खुद से मिलवाया है।।

कुछ ऐसा बन जा !

अपने चहरे को आईना बना, बदन को गुलाब,
अपने गरुर को हवा में उड़ा, अपनी आरजू को बना ख्वाब।।

तेरी हर बात की तालीम हो, हर लफ्ज़ में हो मिठास,
तू नहीं तो दुनिया कुछ भी नहीं, तू है तो दुनिया खास।।

तेरे आने पर ख़ुदा सजदा करें, तेरे जाने पर हिज्र की हो रात।
तेरी खामोशी एक मसला बन जाए, तू हंस दे तो बहारों की हो सोगात।।

तू ख्याल नहीं एक ख्वाब बन, तू दिन नहीं तू रात बना।
तू हवा नहीं एक तूफ़ान बन, तू प्यास नहीं रेगिस्तान बन।।

तू धुआं नहीं तू आग बन, तू राख नहीं शमशान बन।
तू रहीम नहीं रहमान बन,तू जात नहीं इंसान बन।।

तू एक कौम नहीं संसार बना, तू मुल्क नहीं एक परिवार बना।तू रंजीश नहीं महरम बना, आसमां को नहीं धरती को स्वर्ग बना।

तू मन्दिर नहीं, मस्जिद बना, उसमें अली नहीं तू राम बैठा।
तू काशी नहीं मक्के को जा,वहां क़ुरान नहीं तू गीता पढ़ा।

आशीष रसीला