पैसा है तो चाहे भगवान खरीद ले

पैसा वो है जो किसी औकात खरीद ले,
पैसे वो है जो लोगों के दिन रात खरीद ले ।

ये दुनियां बिकने को बाजार मैं बैठी है,
अपनी जरूरत के हिसाब से यार खरीद ले।

आज होती हैं शादियां पैसों के शानो पर ,
पैसा है तो चाहे हमसफर हजार खरीद ले।

शर्म के बाजार में लोग खुदकी कीमत लगाते हैं,
सही दाम लगाए तो लोगों के जमीर खरीद ले।

जिस आसमान में तुम उड़ान ना भर सको,
पैसा है तो अपना नया आसमान खरीद ले।

कोई  फर्क नहीं पड़ता  की तू क्या था ,
पैसा है तो अपनी नई पहचान खरीद ले ।

मरते हैं भूख से लोग इन मंदिरों के बाहर,
पैसा है तो चाहे अपना भगवान खरीद ले ।

इस दुनियां में हर एक चीज की कीमत है,
मुंह मांगे दाम पर यहां  इंसान खरीद ले।

माना सबकुछ बिकता है इस दुनिया में, मगर
कोई ऐसी दौलत नहीं जो मां का प्यार खरीद ले।।

आशीष रसीला

किताबों में मिलूं

मैं मर गया तो शायद इन किताबों में मिलूं ,
एक नज़्म बनकर शायद तेरे होठों पर खिलूँ ।

मुझे ढूंढने से बेहतर तुम मुझे महसूस करना,
शायद हवा की खुशबू में सिमटा हुआ मिलूं।

तुम मेरी लिखी हुई किताबों को गौर से पढ़ना ,
मुमकिन है मैं मेरी तहरीर में सलकता हुआ मिलूं।

तुम मेरे लगाए हुए पेड़ों के पास कुछ देर बैठना,
शायद सर्दी में ठिठुरता,गर्मी में  तप्ता हुआ मिलूं।

हो सके तो मेरी बातें,मेरे लतीफे हमेशा याद रखना,
किसी दिन तेरे रोते चेहरे पर मैं हंसी बन कर खिलूँ ।।

आशीष रसीला

Ashish Rasila

पीपल का पत्ता

मैं अक्सर देखता हूं
सड़क के किनारे
पीपल के पेड़ पर
एक छोटा हरा पत्ता
पेड़ की टहनी से
उंगली झुड़ाने की ज़िद करता है
हवा उसके सपनो को हवा
देकर उसको परिंदों सा
उड़ने का ख्वाब देती है
मां जानती है उससे उंगली
छुटने पर वो जमीं पर
गिर जाएगा
उसका मुलायम बदन फिर
उसके सामने ही
मुसाफिरों के पांव के तले कुचला जायेगा
मां जमीं पर पड़ी
सूखे पत्तों की लाशें दिखा
उसे डराती है मगर
वो बहुत ज़िद्दी है
वो अब भी हवा के आने पर
ज़िद करता है
उसे लगता है हवा नहीं
वो खुद उड़ता है
अजीब सा वहम पाले है
क्या हम इंसान भी ऐसें हैं ?

***आशीष रसीला***

Ashish Rasila

माँ ( Happy mother’s day)

सब किरदारों से हटकर है माँ
कुछ-कुछ नानी जैसी है माँ

ना कोई फरिश्ता ना कोई खुदा
मुझको माँ जैसी दिखती है माँ

कभी गुस्से में तपती दोपहर जैसी
कभी बरगद की ठंडी छाँव है माँ

छोटी-छोटी नोक्छोक में उलझी
बातों की काफी सुलझी है माँ

कभी शहद सी मीठी लोरी गाए
कभी नीम के पत्तों की औषधि है माँ

माँ चूल्हा-चौका चिमटा-फुकनी
बाजरे की रोटी सरसों का साग है माँ

बंधी होती है माँ के पल्लू से चाबी
घर की पहली लक्ष्मी है माँ

यूं तो वो अक्सर मुस्कुराती रहती है
अब्बा से लड़कर बहुत रोती है माँ

कभी यहां से वहां, वहां से यहां
चिंता में सोती कच्ची नींद है माँ

इस दुनिया में चाहे कितने भी खुदा हो
इस दुनिया का इकलौता वजूद है माँ

हर गली हर गांव हर शहर में है माँ
हर लड़की का पहला अहसास है माँ…

***Ashish Rasila***

Ashish Rasila