पत्थरों के शहर में शीशे का एक मकान ,
सब लोग अच्छे हैं यहां, बस बुरा है भगवान ।
काफिरों की बस्ती में किसी ने नेकी कर डाली,
मुमकिन है यहां कोई पढ़ता है कुरान ।।
***आशीष रसीला***
तुम पूछते हो कि हम क्या लिखते हैं ,हम खुदा को जमीं पर ला कर उसके गुनाहों की दास्तान लिखते हैं | पंख टूट कर गिर जाने वाले परिंदे के अरमान लिखते हैं || ये आंधियां अपनी औकात मे रहें इसलिए हम तूफान लिखते हैं|| अब इससे ज्यादा और क्या कहूँ मेरे हुज़ूर हम अपने दुश्मन को ही अपनी जान लिखते है||
पत्थरों के शहर में शीशे का एक मकान ,
सब लोग अच्छे हैं यहां, बस बुरा है भगवान ।
काफिरों की बस्ती में किसी ने नेकी कर डाली,
मुमकिन है यहां कोई पढ़ता है कुरान ।।
***आशीष रसीला***
Wah wah kya baat
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Thank you so much ji
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