तुम इस तरह भी ना खुदपर काबू रखो ,
थक गई हो तो मेरे कंधे पर हाथ रखो ।।
आशीष रसीला
तुम पूछते हो कि हम क्या लिखते हैं ,हम खुदा को जमीं पर ला कर उसके गुनाहों की दास्तान लिखते हैं | पंख टूट कर गिर जाने वाले परिंदे के अरमान लिखते हैं || ये आंधियां अपनी औकात मे रहें इसलिए हम तूफान लिखते हैं|| अब इससे ज्यादा और क्या कहूँ मेरे हुज़ूर हम अपने दुश्मन को ही अपनी जान लिखते है||
तुम इस तरह भी ना खुदपर काबू रखो ,
थक गई हो तो मेरे कंधे पर हाथ रखो ।।
आशीष रसीला
मेरी ख़ामोशी का जवाब उसने भी ख़ामोशी से दिया,
पहली बार किसी को इतनी बेरहमी से लड़ते देखा।
आशीष रसीला
आईना देखो जब तुम्हें कोई देखता ना हो
खुद से बातें करो मगर कोई देखता ना हो….
खुलकर हंसो अपने दुश्मनों के सामने
खुलकर रो दो जब दुश्मन देखता ना हो….
गुनाह करो गुनाह करने में कोई बुराई नहीं
जरूरी है गुनाह करते वक्त खुदा देखता ना हो…
बात एक तरफा प्यार की है तो बस इतना कहूंगा
उसे चुपके से देखो जब वो तुम्हे देखता ना हो….
वो दिल में रह सकतें हैं बस शर्त इतनी
जाना तब होगा जब दिल देखता ना हो….
तुम खुद को जानना चाहते हो तो मेरा मशवरा है
खुद को गौर से महसूस करो जब कोई देखता ना हो….
***आशीष रसीला***
आसमान का सपना देखने वालों ,
इस जमीं का ज़िम्मा आपका है ।
बुझाकर दिया, अंधेरा देखा,
अब रोशनी का जिम्मा, आपका है ।
दर्द पर लतीफे पढ़ने वालों ,
अगला पन्ना, आपका है।
बारिश के तूफान में ओले पड़े,
खेत खलिहान, किसान का है ।
बची धान सरकारें खाएं,
सड़क पर किसान, आपका है ।
शहर की आग के पीछे तेज हवा,
अब अगला गांव, आपका है।
मैं बिखरा, तो वो टूटा ,
आगे उनसे रिश्ता, आपका है ।
पेड़ कटा, हवा जहरली हुई,
ये कुदरत का तोहफा, आपका है
कुछ चले गए, कुछ जाने वाले हैं,
अब सिर्फ इतंजार, आपका है ।।
*** आशीष रसीला***
खुद को किसी से बेहतर कहना मेरा मक़सद नहीं,
किसी का दिल दुखा कर खुश रहना मेरा मक़सद नहीं।
मैं जो भी था, मैं जो भी हूं , मैं जो भी होने वाला हूं ,
अपने हालों पर किसी को मुजरिम बनाना मेरा मक़सद नहीं।
मुझ से अनजाने में किसी का दिल भी टूट सकता है ,
मगर मैं पलट कर माफ़ी ना मांगू, मेरा मक़सद नहीं ।
कुछ टूटे हैं मुझ से रिश्ते, कुछ लोगों ने मुझ से तोड़े हैं,
मगर रिश्तों के टूटने से मैं ख़ुद टूट जाऊं, मेरा मक़सद नहीं ।
मैं किसी के ऐब गिनाता फिरूं ये मेरी ज़हनियत नहीं है ,
अपने दुश्मन को भी बुरा कहना, मेरा मक़सद नहीं ।
झुक जाए सर मेरे एहतराम में, ऐसी शोहरत का मोहताज नही,
किसी का सर झुका कर उसे गले लगाना, मेरा मक़सद नहीं।
किसी के सपनों पर मैं अपने सपनों की नीव नही रख सकता,
किसी को हरा कर जितने की मुराद रखना, मेरा मक़सद नहीं।
ये दुनियां एक दुनियां है मेरी दुनियां तो कहीं और है ,
ख्वाबों की दुनियां में हकीकत को भूल जाना, मेरा मक़सद नहीं।
मेरा गलत होना या सही होना तुम्हारे नजरिए से है,
किसी के कहने पर मैं बदल जाऊं, मेरा मक़सद नहीं ।
खुदा है तो खुदा होगा, मुझे उसके होने पर ऐतराज नहीं,
खुदा के नाम पर मैं मिट जाऊं ऐसा सोचना, मेरा मक़सद नहीं ।
मुनासिफ है की कल बुलंदियों का मैं आसमान चुमूं ,
मगर मैं अपनी ओकाद भूल जाऊं, मेरा मक़सद नहीं ।
इस दुनियां में रहने वाले हम सभी किरायेदार हैं ,
मैं जैसे आया था, वैसे ही लौट जाऊं, मेरा मक़सद नहीं ।
मैंने बहुत सोच समझ कर ये अपनी बातें रखी हैं ,
लोग अपने दिल पर ना लगा बैठें, मेरा मक़सद नहीं ।।
***आशीष रसीला***
जो कभी हमें अच्छा कहते थे , वो अब हमें बुरा कहने लगें हैं,
जो हमें समझा करते थे, वो अब हमें से जानने लगें हैं ।
मुझे जिनके इंसान होने पर भी ताज्जुब हुआ करता था,
अजीब बात है वे लोग अब खुद को खुदा कहने लगें हैं ।।
***आशीष रसीला***