मैं तुझे अल्लाह नाम से पुकारूं तो फिर भगवान ना कहूं,
मैं खुद को हिन्दू , मुस्लिम कहूं ,मगर इंसान ना कहूं।
जमीं को बांट दिया यहां के रहने वालों ने,
मैं मस्जिद जाऊं तो हिन्दू और मन्दिर जाऊं तो मुसलमान ना कहूं।।
आशीष रसीला
तुम पूछते हो कि हम क्या लिखते हैं ,हम खुदा को जमीं पर ला कर उसके गुनाहों की दास्तान लिखते हैं | पंख टूट कर गिर जाने वाले परिंदे के अरमान लिखते हैं || ये आंधियां अपनी औकात मे रहें इसलिए हम तूफान लिखते हैं|| अब इससे ज्यादा और क्या कहूँ मेरे हुज़ूर हम अपने दुश्मन को ही अपनी जान लिखते है||
मैं तुझे अल्लाह नाम से पुकारूं तो फिर भगवान ना कहूं,
मैं खुद को हिन्दू , मुस्लिम कहूं ,मगर इंसान ना कहूं।
जमीं को बांट दिया यहां के रहने वालों ने,
मैं मस्जिद जाऊं तो हिन्दू और मन्दिर जाऊं तो मुसलमान ना कहूं।।
आशीष रसीला
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