मेरी ज़िंदगी उदासी की खास रिश्तेदार लगती है,
मैं अपनी खुशियों को याद करता हूं तो वो रोने लगती है।।
***आशीष रसीला***
तुम पूछते हो कि हम क्या लिखते हैं ,हम खुदा को जमीं पर ला कर उसके गुनाहों की दास्तान लिखते हैं | पंख टूट कर गिर जाने वाले परिंदे के अरमान लिखते हैं || ये आंधियां अपनी औकात मे रहें इसलिए हम तूफान लिखते हैं|| अब इससे ज्यादा और क्या कहूँ मेरे हुज़ूर हम अपने दुश्मन को ही अपनी जान लिखते है||
मेरी ज़िंदगी उदासी की खास रिश्तेदार लगती है,
मैं अपनी खुशियों को याद करता हूं तो वो रोने लगती है।।
***आशीष रसीला***
Wow😲
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👌👌
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Shukriya 🙏
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Super
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Thank you 😊
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