वो निकलते हैं जब शहर, तो शहर ठहर कर देखता है,
जवानों की तो छोड़िये, बुज़ुर्ग भी दिल थाम कर बैठता है ।
हवाऐं भी ना जाने क्यूं उसे छूने को आती हैं ?
ये बादल भी उसे छूने के खातिर बरस कर देखता है ।
सितारे बाम – ऐ – फलक से उतर जाते हैं ,
चांद भी उसको खिड़की से छुप कर देखता है ।
उनका हुस्न उनकी जवानी का पहरा देता है ,
के ख़ुदा भी उसकी खूबसूरती को पलट कर देखता है
हीरे – मोती उन पर सजने की फ़रियाद करते हैं ,
के आईना भी खुद उन्हें सवर कर देखता है।।
यूं तो हम भी देखते है रोक हसीनाओं को लेकिन,
हमारा दिल भी ना जाने क्यूं उन्हीं पर ठहर कर देखता है। ।
***आशीष रसीला***

वाह, खूबसूरती पर बेहद खूबसूरत रचना👌
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Bahut bahut shukriya ji 🙏❤️
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