वो निकलते हैं जब शहर

वो निकलते हैं जब शहर, तो शहर ठहर कर देखता है,
जवानों की तो छोड़िये, बुज़ुर्ग भी दिल थाम कर बैठता है ।

हवाऐं भी ना जाने क्यूं उसे छूने को आती हैं ?
ये बादल भी उसे छूने के खातिर बरस कर देखता है ।

सितारे बाम – ऐ – फलक से  उतर जाते हैं ,
चांद भी उसको खिड़की से छुप कर देखता है ।

उनका हुस्न उनकी जवानी का पहरा देता है ,
के ख़ुदा भी उसकी खूबसूरती को पलट कर देखता है

हीरे – मोती उन पर सजने की फ़रियाद करते हैं ,
के आईना भी खुद उन्हें सवर कर देखता है।।

यूं तो हम भी देखते है रोक हसीनाओं को लेकिन,
हमारा दिल भी ना जाने क्यूं उन्हीं पर ठहर कर देखता है। ।

***आशीष रसीला***

Ashish Rasila

2 thoughts on “वो निकलते हैं जब शहर

Leave a comment

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.