मेरा मक़सद नहीं

खुद को किसी से बेहतर कहना मेरा मक़सद नहीं,
किसी का दिल दुखा कर खुश रहना मेरा मक़सद नहीं।

मैं जो भी था,  मैं जो भी हूं , मैं जो भी होने वाला हूं ,
अपने हालों पर किसी को मुजरिम बनाना मेरा मक़सद नहीं।

मुझ से अनजाने में किसी का दिल भी टूट सकता है ,
मगर मैं पलट कर माफ़ी ना मांगू, मेरा मक़सद नहीं ।

कुछ टूटे हैं मुझ से रिश्ते, कुछ लोगों ने मुझ से तोड़े हैं,
मगर रिश्तों के टूटने से मैं ख़ुद टूट जाऊं, मेरा मक़सद नहीं ।

मैं  किसी के ऐब गिनाता फिरूं ये मेरी ज़हनियत नहीं है ,
अपने दुश्मन को भी बुरा कहना, मेरा मक़सद नहीं ।

झुक जाए सर मेरे एहतराम में, ऐसी शोहरत का मोहताज नही,
किसी का सर झुका कर उसे गले लगाना, मेरा मक़सद नहीं।

किसी के सपनों पर मैं अपने सपनों की नीव नही रख सकता,
किसी को हरा कर जितने की मुराद रखना, मेरा मक़सद नहीं।

ये दुनियां एक दुनियां है मेरी दुनियां तो कहीं और है ,
ख्वाबों की दुनियां में हकीकत को भूल जाना, मेरा मक़सद नहीं।

मेरा गलत होना या सही होना तुम्हारे नजरिए से है,
किसी के कहने पर मैं बदल जाऊं, मेरा मक़सद नहीं ।

खुदा है तो खुदा होगा, मुझे उसके होने पर ऐतराज नहीं,
खुदा के नाम पर मैं मिट जाऊं ऐसा सोचना, मेरा मक़सद नहीं ।

मुनासिफ है की कल बुलंदियों का मैं आसमान चुमूं ,
मगर मैं अपनी ओकाद भूल जाऊं, मेरा मक़सद नहीं ।

इस दुनियां में रहने वाले हम सभी किरायेदार  हैं ,
मैं जैसे आया था, वैसे ही लौट जाऊं, मेरा मक़सद नहीं ।

मैंने बहुत सोच समझ कर ये अपनी बातें रखी हैं  ,
लोग अपने दिल पर ना लगा बैठें, मेरा मक़सद  नहीं ।।

***आशीष रसीला***

Ashish Rasila

6 thoughts on “मेरा मक़सद नहीं

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