मेरी ख़ामोशी का जवाब उसने भी ख़ामोशी से दिया,
पहली बार किसी को इतनी बेरहमी से लड़ते देखा।
आशीष रसीला
तुम पूछते हो कि हम क्या लिखते हैं ,हम खुदा को जमीं पर ला कर उसके गुनाहों की दास्तान लिखते हैं | पंख टूट कर गिर जाने वाले परिंदे के अरमान लिखते हैं || ये आंधियां अपनी औकात मे रहें इसलिए हम तूफान लिखते हैं|| अब इससे ज्यादा और क्या कहूँ मेरे हुज़ूर हम अपने दुश्मन को ही अपनी जान लिखते है||
मेरी ख़ामोशी का जवाब उसने भी ख़ामोशी से दिया,
पहली बार किसी को इतनी बेरहमी से लड़ते देखा।
आशीष रसीला
waah!
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Thank you
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बहुत ही सुंदर पंक्तियां
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Thanks
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बहुत ख़ूब !!
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Thank you !
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waah….kya khoob likha hai
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Thank you 🙏
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🙂
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👍
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